PR Sreejesh, भारतीय हॉकी का एक ऐसा नाम है, जो खेल जगत में अपनी मेहनत और समर्पण के कारण उच्च स्थान पर पहुंचा है। उनकी यात्रा केवल खेल में ही नहीं, बल्कि उनके निजी जीवन में भी प्रेरणादायक है। इस लेख में, हम उनके जन्म से लेकर उनके करियर, शिक्षा, विवाह और निजी जीवन के हर पहलू पर प्रकाश डालेंगे।
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बचपन और प्रारंभिक जीवन
PR Sreejesh का जन्म 8 मई 1988 को केरल के एर्णाकुलम जिले के किज़्हक्कमबालम गाँव में हुआ था। उनका पूरा नाम परमालपरंबिल रवींद्रन श्रीजेश है। श्रीजेश का बचपन साधारण लेकिन अनुशासन से भरा हुआ था। उनके पिता एक किसान थे और मां गृहिणी। एक छोटे से गाँव में जन्म लेने के बावजूद, श्रीजेश के भीतर कुछ बड़ा करने की चाहत हमेशा से थी।
PR Sreejesh शिक्षा
PR Sreejesh की प्रारंभिक शिक्षा उनके गाँव के स्कूल में ही हुई। पढ़ाई में वह हमेशा से अच्छे थे, लेकिन उनकी असली रुचि खेलों में थी। बचपन में ही उन्होंने विभिन्न खेलों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। खासतौर पर एथलेटिक्स में उनकी गहरी रुचि थी, लेकिन उनकी किस्मत उन्हें हॉकी की ओर ले आई।
हॉकी में करियर की शुरुआत
PR Sreejesh की हॉकी यात्रा तब शुरू हुई जब उन्होंने 12 वर्ष की आयु में अपनी स्कूली टीम में गोलकीपर की भूमिका निभाई। उनकी असाधारण प्रतिभा को देखते हुए, उनके कोच ने उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। श्रीजेश ने नेशनल हॉकी एकेडमी, बेंगलुरु में दाखिला लिया और वहां से उन्होंने हॉकी की बारीकियों को सीखा।
साल 2004 में, उन्होंने जूनियर नेशनल टीम में अपना डेब्यू किया। उनकी प्रतिभा और प्रदर्शन ने जल्द ही सीनियर टीम के दरवाजे खोल दिए। साल 2006 में, श्रीजेश ने भारतीय सीनियर टीम के लिए अपना पहला मैच खेला। धीरे-धीरे, वह टीम के महत्वपूर्ण सदस्य बन गए और उनकी गोलकीपिंग क्षमताओं ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
करियर की उचाइयां
PR Sreejesh का करियर कई महत्वपूर्ण मील के पत्थरों से भरा हुआ है। उन्होंने 2014 में एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता, जो उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इसके अलावा, उन्होंने 2021 में टोक्यो ओलंपिक में भारतीय टीम को ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका खेल के प्रति समर्पण और उत्कृष्ट प्रदर्शन उन्हें टीम का कप्तान भी बना दिया।
श्रीजेश ने अपने करियर में कई अवार्ड्स और सम्मान प्राप्त किए हैं, जिनमें अर्जुन अवार्ड और पद्म श्री शामिल हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और अनुभव ने भारतीय हॉकी टीम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
विवाह और निजी जीवन
श्रीजेश का विवाह साल 2011 में अनीशा से हुआ, जो एक शिक्षक हैं। उनके विवाह से दो बच्चे हैं। उनके निजी जीवन में भी अनुशासन और सादगी देखने को मिलती है। श्रीजेश अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करते हैं और अपने बच्चों को भी खेलों में रुचि लेने के लिए प्रेरित करते हैं।
PR Sreejesh की सफलता की कहानी केवल उनकी मेहनत और समर्पण तक सीमित नहीं है, बल्कि उन्होंने अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना किया है। उनके करियर के शुरुआती दिनों में उन्हें कई बार टीम से बाहर भी किया गया, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि असली सफलता वही है जो कठिनाईयों के बावजूद प्राप्त की जाए। (First Post)
पीआर श्रीजेश: भारतीय हॉकी के योद्धा का आखिरी नमन
भारतीय हॉकी टीम के लिए PR Sreejesh का योगदान अद्वितीय रहा है। उनके लिए खेला गया ‘Win it for Sreejesh’ अभियान अंततः एक परीकथा जैसा साबित हुआ। पेरिस में ओलंपिक ब्रॉन्ज़ मेडल जीतने के बाद, जब टीम ने उन्हें कंधों पर उठा लिया, तो यह उनके असाधारण करियर का एक शानदार समापन था।
टोक्यो ओलंपिक में, जब भारतीय हॉकी टीम ने 41 साल बाद ब्रॉन्ज़ मेडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाया, श्रीजेश गोलपोस्ट के ऊपर बैठे हुए दिखाई दिए। उस क्षण ने भारतीय हॉकी के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा। लेकिन पेरिस में, जब भारत ने स्पेन को 2-1 से हराकर एक और ओलंपिक ब्रॉन्ज़ मेडल जीता, तो श्रीजेश ने गोलपोस्ट के सामने दंडवत किया, जो उनके खेल के प्रति असीम प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। इस दृश्य ने सचिन तेंदुलकर द्वारा वानखेड़े स्टेडियम में पिच को नमन करने की याद दिलाई।
36 वर्षीय श्रीजेश, जिन्होंने अपने 20 साल के अंतरराष्ट्रीय करियर में 336 मैच खेले, ने हॉकी को एक ऐसे खिलाड़ी के रूप में अलविदा कहा, जिसे हमेशा याद रखा जाएगा। उन्होंने अपने कोच की सलाह का जिक्र करते हुए कहा, “मेरे कोच ने कहा था, ‘स्री, जब तुम रिटायर हो, तो लोग यह न कहें कि ‘क्यों नहीं?’, बल्कि वे पूछें ‘क्यों?’ और मुझे लगता है कि मैंने सही समय पर यह निर्णय लिया है।”
टीम के कप्तान हरमनप्रीत सिंह ने भी इस मौके पर अपनी भावनाएं व्यक्त कीं। उन्होंने कहा, “मैं श्रीजेश को एक बड़ा धन्यवाद देना चाहता हूं क्योंकि उन्होंने टीम के लिए अपना सबकुछ दे दिया। हम उन्हें बहुत प्यार करते हैं और उनका बहुत सम्मान करते हैं। वह हमारे साथ हैं, हमारे दिलों में हमेशा रहेंगे।”
श्रीजेश का यह अंतिम ओलंपिक उनके करियर का एक भावुक और गर्व से भरा समापन था। उन्होंने अपनी पूरी क्षमता के साथ खेलते हुए भारतीय हॉकी को एक नई दिशा दी और उनके योगदान को हमेशा सराहा जाएगा।